ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
चाहे फिर तू चट्टानों से टकराये।
समन्दर में लहरें आयें या मौसम परिवर्तित हो जाये।
ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
चाहे कितनी अधेरी रात हो या फिर दरिया में तूफान हो।
न डरना ,न डगमगाना,न होना निराश तुम।
रखना मजबूत इरादे तुम।
ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
घना रेगिस्तान हो या बंजर भूमि का मैदान हो।
घनी गहरी धूप हो या बिन बादल बरसात हो।
ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
चाहे फिर तू चट्टानों से टकराये।
समन्दर में लहरें आयें या मौसम परिवर्तित हो जाये।
ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
चाहे कितनी अधेरी रात हो या फिर दरिया में तूफान हो।
न डरना ,न डगमगाना,न होना निराश तुम।
रखना मजबूत इरादे तुम।
ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
घना रेगिस्तान हो या बंजर भूमि का मैदान हो।
घनी गहरी धूप हो या बिन बादल बरसात हो।
ओ राही! लक्ष्य न ओझल होने पाये।
बहुत अच्छी कविता है। उम्दा!
ReplyDeletenice prerak
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ReplyDeleteu really understand the critical situation my dear no fellowship but think about the goal.
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