Wednesday, October 3, 2012

गांधी गलत नहीं था



कल २ अक्तूबर २०१२ ,को मैं राजघाट और विजय घाट "बापू और शास्त्री" जी को अपनी श्रद्दांजली अर्पित करने गयी थी। प्रत्येक वर्ष मैं वहां जातीं हूं। इस बार मेरा जाना मेरी सहेली मृदुस्मिता  के साथ तय था।किन्तु वह किन्हीं कारणों से ना सकी।उसका फोन आया। कि वो नहीं आ पायेगी।खैर मुझे तो जाना ही था। मैंनें बचपन से ही आजादी की कहानी नाना जी और मम्मी पापा और अपनी प्रिसिंपल सरोजिनी गुप्ता के माध्यम से सुनी थी।हमेशा जब दूरदर्शन पर राजघाट पर श्रद्दांजली  अर्पित करते प्रधानमंत्री को देखती तो मेरा भी मन यहां आने का करता तो फिर आज तो मैं दिल्ली में हूं।यही सोचकर हर बार वहां जाती हूं। मैनें एक बार सोचा क्या करें अब तो अकेले जाना पडेगा।फिर अचानक मेरे सामने नाना जी का चेहरा आया,जिन्होंने उस १९४७ में आजादी के आन्दोलनों मे भाग लिया था।मैनें गांधी जी को तो नहीं देखा है पर नाना जी की बातें याद हैं,वह गलत नहीं थे। आज दुनिया गांधी को गाली दे रही है,जिन्हें राष्ट्र्पिता कहा गया उन्हें कोस रही।जिन्होनें सत्य ,अहिंसा जैसे आदर्श देश को दिये उनको बुरा भला कह रही है।मैं भारत मां के सच्चे देशभक्त मोह्नदास करमचन्द गांधी को शत-शत नमन करती हूं।कमियां हर इसांन में होती है,पर ऐसे गुण जो देश के काम आ सकें वह बहुत कम लोगों में होतें हैं....
    इस अवसर पर एक कविता ह्मेशा याद आती है:
  एक रात गांधी जी को मैनें देखा सपने में,
   गद-गद हुयी बहुत हर्षायी नहीं रही मैं अपने में,
 कर प्रणाम बापू को मैनें अपना शीश झुकाया,
 बदले में वरदानों का मंगल वर उनसे पाया,
 लगे पूछने फिर मुझसे मां भारत का हाल,
 कैसी हैं बेटियां हमारी कैसे बाल गोपाल,
 झिझक गय़ी मैं यह सब सुनकर बोल नहीं पायीं कुछ।
 मौन देखकर मुझको बापू ने फिर दोहराया।
 तब एक -एक विपदाओं गाथा गिन-गिन कर खोली।
 कहा स्वर्ग क्षण भरा को भी मुझको अब ना है भाता 
 क्य़ोंकि संकट से घिरी हुयी है मेरी भारत माता।

Sunday, July 22, 2012

यह सपना मुझे हकीकत से भी प्यारा है,


यह   सपना   मुझे   हकीकत  से  भी  प्यारा  है,
  तुम्हारा साथ मुझे हर बन्धन से भी प्यारा है। 



कहते-कहते बात लबों पर आकर रूक जाती है,

पर तुम्हारे सामने आते ही ये आखें तुमसे बहुत कुछ कह जाती है।
    





 यह सच है कि मैं तुमसे और तुम्हारी जिन्दगी से जुडीं हूं।


       जज्बात तो हैं पर तुमसे बयां करना  नहीं आता,



     तुम गैर नहीं पर फिर भी तुमसे कहना नहीं आता,
     हां तुम जिन्दगी की हकीकत हो,
     पर ये भी तुमसे कहना नहीं आता।
     एक सपना जो मैनें देखा मेरे और तुम्हारे लिए,
     उस सपने की महक मेरी जिन्दगी में है,
     ख्वाब ओर ह्कीकत का अंतर तो पता नहीं,
     हां ,ये सच है कि यह सपना मुझे हकीकत से भी प्यारा है,
     तुमसे कुछ ना कह्ने का कारण बस इतना ही है,
     तुमसे दूर जाने से डर लगता है,
     तुम्हारे इंकार से डर लगता है,
     तुम्हारी बेरूखी से डर लगता है,
     हां ,ये सच है कि यह सपना मुझे हकीकत से भी प्यारा है,





देखो!यह है मेरा बचपन ।


देखो!यह है मेरा बचपन ।
कितना निश्चल ,कितना प्यारा।

देखो! यह है मेरा बचपन ।
कभी आकाश में उडते हवाई जहाज को देखकर,
साथ पंछी बनकर उडता -बचपन।

देखो! यह है मेरा बचपन।
कभी पानी वाली मछ्ली को देखकर ,
उसकी छटपटाहट को महसूस करता-बचपन

देखो! यह है मेरा बचपन।
कभी कागज की कश्ती बनाकर,पानी में तैरता सा-बचपन।

देखो! यह है मेरा बचपन।
कभी दोस्तों के साथ रंग-बिरंगे सपने -सा बुनता-बचपन।

देखो! यह है मेरा बचपन।
कभी पतंग लेकर ढील देता सा-बचपन।

देखो! यह है मेरा बचपन।
कभी क्लास में टीचर का डंडा खाकर मुस्कुराता सा-बचपन।
देखो! यह है मेरा बचपन।

Saturday, July 21, 2012

यह सपना मुझे हकीकत से भी प्यारा है,


यह   सपना   मुझे   हकीकत  से  भी  प्यारा  है,

तुम्हारा साथ मुझे हर बन्धन से भी प्यारा है।

कहते-कहते बात लबों पर आकर रूक जाती है,
पर तुम्हारे सामने आते ही ये आखें तुमसे बहुत कुछ कह जाती है।

Saturday, March 3, 2012

परिदें

थे परिदें कुछ जो घर से निकले ,मंजिल की तलाश में।


देखे थे सपने सोती -जागती आखों से।

कभी खुशी से मुस्कुराते थे,कभी अपनों को याद करके रो भी जाते थे।

मुश्किलों से न घबराकर हौसलां बुलन्द रखतें थे।

Thursday, January 5, 2012

जीवन का कारवां य़ू ही चलता रहेगा ।

जीवन का कारवां य़ू ही चलता रहेगा ।


कभी गम के बादल गरजेगें.....

तो कभी खुशी की हवा चलेगी..

पर एक गुजारिश है तुमसे ऐ जिन्दगी!

जब दु;ख ज्यादा हों तो निराश मत होना,

अच्छे पलों को याद करके थोडा मुस्करा लेना।