थे परिदें कुछ जो घर से निकले ,मंजिल की तलाश में।
देखे थे सपने सोती -जागती आखों से।
कभी खुशी से मुस्कुराते थे,कभी अपनों को याद करके रो भी जाते थे।
मुश्किलों से न घबराकर हौसलां बुलन्द रखतें थे।
देखे थे सपने सोती -जागती आखों से।
कभी खुशी से मुस्कुराते थे,कभी अपनों को याद करके रो भी जाते थे।
मुश्किलों से न घबराकर हौसलां बुलन्द रखतें थे।