कल २ अक्तूबर २०१२ ,को मैं राजघाट और विजय घाट "बापू और शास्त्री" जी को अपनी श्रद्दांजली अर्पित करने गयी थी। प्रत्येक वर्ष मैं वहां जातीं हूं। इस बार मेरा जाना मेरी सहेली मृदुस्मिता के साथ तय था।किन्तु वह किन्हीं कारणों से ना सकी।उसका फोन आया। कि वो नहीं आ पायेगी।खैर मुझे तो जाना ही था। मैंनें बचपन से ही आजादी की कहानी नाना जी और मम्मी पापा और अपनी प्रिसिंपल सरोजिनी गुप्ता के माध्यम से सुनी थी।हमेशा जब दूरदर्शन पर राजघाट पर श्रद्दांजली अर्पित करते प्रधानमंत्री को देखती तो मेरा भी मन यहां आने का करता तो फिर आज तो मैं दिल्ली में हूं।यही सोचकर हर बार वहां जाती हूं। मैनें एक बार सोचा क्या करें अब तो अकेले जाना पडेगा।फिर अचानक मेरे सामने नाना जी का चेहरा आया,जिन्होंने उस १९४७ में आजादी के आन्दोलनों मे भाग लिया था।मैनें गांधी जी को तो नहीं देखा है पर नाना जी की बातें याद हैं,वह गलत नहीं थे। आज दुनिया गांधी को गाली दे रही है,जिन्हें राष्ट्र्पिता कहा गया उन्हें कोस रही।जिन्होनें सत्य ,अहिंसा जैसे आदर्श देश को दिये उनको बुरा भला कह रही है।मैं भारत मां के सच्चे देशभक्त मोह्नदास करमचन्द गांधी को शत-शत नमन करती हूं।कमियां हर इसांन में होती है,पर ऐसे गुण जो देश के काम आ सकें वह बहुत कम लोगों में होतें हैं....