आज से कुछ साल पहले मुझे एक फोन आया फोन मेरी मौसी की बड़ी लड़की "आस्था विधि "का था..शब्द कुछ इस तरह थे "मनु दी अंतया का एडमिशन दौलत राम कॉलेज में हो गया है..हम लोग(मैं,मम्मी और अन्त्या ) कुछ दिनों के लिए आपके पास दिल्ली आना चाहतें हैं.. अगर कोई प्रॉब्लम हो तो बताइए हम कहीं और रहें का बंदोबस्त कर लेगें ...मैंने कहा कोई प्रॉब्लम नहीं है आ जाओ..मैंने तीनो लोगो की आव-भगत में कोई कमी नहीं आने दी ..मौसी और विधि तो चार दिनों बाद चले गएँ ..पर अंतया ने मेरे पास रहकर कुछ दस -पंद्रह दिन कलासेज़ किये ..मैं उसे ६ बजे उठकर पूड़ी सब्जी बनाकर देती .........मौसी कुछ दिनों बाद आयीं और अन्त्या को दूसरा हॉस्टल दिलवा दिया..उसके बाद कई महीनो तक उनका कोई फ़ोन नहीं आया...सन २०१२ में जुलाई में एक बार फिर फोन आया कि दीदी हम लोग आपसे मिलने आना चाहतें हैं वो दोनों आई ..फिर से दो तीन दिन रुककर गयीं ...मैंने दोनों को प्यार से रोका...छोटी बहन कि तरह ..मैं किराये के मकान में रहती थी पानी एक्स्ट्रा लेने पर दो सौ तीन सौ का अलग से चार्ज करते थे मकान मालिक ...छोटा रूम था....................पिछले कुछ दिनों मुझे लखनऊ रेगुलरली आना -जाना पड़ा रहा था..५ मई को मेरी कजिन की सगाई थी इसलिए उसके बार कहने पर की यहाँ घर आ जाइये मैं ..उसके घर चली गयी..वह अलीगंज में रहती थी ..मेरी अपनी बहन भी हॉस्टल में रहती थी इसलिए मैं एक दिन २ मई को उसके पास भी गयी थी उससे एक काम था..५.३० बजे मुझे मौसी के घर से कॉल आया की हम लोग घर पर ताला लगाकर निकल गयेँ हैं. आप हॉस्टल में ही रुकिए हम थोड़ी देर में आकर ले लेंगें ..मैं हॉस्टल में ही रुकी रही ..रात के आठ बजे मुझे कॉल आया कि आप खुद घर आ जायेगा हम लोग घर जा रहे हैं..हॉस्टल विश्वविधालय से काफी अंदर था तो मैंने अपनी कजिन से कह दिया किया कि मैं ये काफी सुनसान एरिया हैं ..ऐसा करो तुम उधर से चलो मैं इधर से चलती हूँ..उनके पास अपनी कार थी .अन्त्या ने कठोरता से जवाब दिया कि आप खुद आ जायेगा घर हम निकल रहे हैं..फ़ोन बात मुझसे अंतया ही कर रही थी.. मैं हॉस्टल के बाहर ही खड़ी सोच रही थी क्या करू क्या न करूँ ..अलीगंज जाने का क्या रास्ता होगा यहाँ से ..खैर विधि मुझे लेने के लिए आ गयी ..कुछ देर बाद अंतया के कमेंट शुरू हुए ..मेरे ऊपर कि आप हॉस्टल गयी कैसे थी..?जैसे गयी थी आ जाती ..फिर उसने विधि पर चिलाना शुरू किया कि कल से तुम गाड़ी को हाथ भी नहीं लगाओगी..वगैरह वगैरह ..मैं सुनती रही ..सब लोग घर पहुँचे..मुझे सुनने में मिला कि आज खाना नहीं बनेगा ...मेरी तरफ सबने देखा तो मैंने भी कह दिया ठीक है..कोई नहीं .|मझे इतना एहसास हो गया था ये लोग मेरा मेरी बहन के हॉस्टल जाने से चिढ गए थे..अगले दिन सन्डे था ..मैंने इस बात को ज्यादा सोचा नहीं ..मैं नाश्ता करके १२ बजे अंदर वाले कमरे में लेट गयीं..अंतया मुझसे बात नहीं कर रही थी..खैर दोपहर बाद कुछ माहौल बदला..अगले दिन सगाई थी..तो उसकी तयारी में सब लगे थे..मैंने छिटपुट काम किये सबको खाना खिलाना ,चाय पिलाना ..बाकि की फलों की पैकिंग, मेवो की पैकिंग मेरी बहन पहले ही करवा चुकी थी..इसलिए मैं बाहर गेस्ट्स के पास बैठ गयी..इस पर भी विधि के कमेंट शुरू थे..की मैं बाहर क्यों बैठी हूँ..उस दिन विधि की वरीक्षा हुई सब घर पर आये . रात के १२.३० रहे थे ..विधि अभी भी अपने फियांसी से बात कर रही थी मेरी बहन और हम दोनों सोने की तैयारी कर ही रहे थे की अन्त्या बोली की मझसे कि आप दूसरे कमरे सो लीजिये जाकर ..यहाँ पर विधि को लेटना होगा ..मैं ने सोचा विधि को आने दो फिर बात करते हैं..फिर थोड़ी देर बाद विधि आई अन्त्या ने कहा कि विधि तुम बीच में आकर सो जाना .चार लोग लेट लेंगे ..मैंने सोचा ये भी ठीक है..मैंने भी विधि से कहा कि "आल आउट" लगा दो मच्छर हैं कमरें में..इस पर अन्त्या ने कहा कि किसी के पास टाइम नहीं है सब थके हुई हैं..आप ऐसे ही सो जाईये..उसके तुरंत बाद मेरी छोटी बहन वहां से उठकर चलने लगी ...इस पर अन्त्या फिर तेज़ी से बोली तनु दी आप क्यों जा रही हैं..तो मुझे वास्तव में अन्त्या कह तो मुझसे रही थी मुझे जाना चाहिए था ..तो मैं भी वहां से चली गयीं उसके बाद विधि ने अनुचित ढग से कहना शरू कर दिया की कल तक तो किसी को कोई समस्या नहीं हो रही थी आज ही हो रही है ..मैंने कुछ जवाब देना सही नहीं समझा इसलिए चुप रहीं ..दूसरे कमरे में गयी देखा सब लोग सो चुकें हैं फिर मैंने कुशन उठाये तो अन्त्या बोली "कुशन मत लीजिये गंदे हो जायेगे.........." ..मैं अभी भी चुप थी..थोड़ी देर विधि ने हम दोनों बहनों की तरफ ऊँगली उठकर कहा की "कल से कोई मेरा मुँह मत देखना .. रात के १२.३० जवाब देती भी क्या...उनके कमेंट्स का..पार्टी से लौटने के बाद थकान भी लग रही थी..इसलिए सोना जरुरी समझा..मन तो बहुत निराश था रात को नींद भी नही आई मन तो कर था उसी वक्त घर से निकल जाये पर ...कुछ समझ में नहीं आया ....तो लेते रहे ....सुबह उठकर सामान पैक करके निकलने की कोशिश की तो भी धमकियाँ स्टार्ट थी.."अगर आज यहाँ से गयी तो मेरा मुह भी मत देखिएगा ..इस पर मौसी बोली की कोई कहीं नहीं जायेगा मैंने और मेरी बहन ने रीजन रखा की हमें हजरतगंज जाना तो भी मौसी ने कहा नास्ता करके जाना ...इस पर विधि मुझसे बोली की मनु दी आपको जाना हो तो चली जाइये ..खैर बड़ों के रोकने पर मैं रुक जरूर गयी .मेरी बहन हॉस्टल के लिए निकल गयी थी...मगर फिर उनका ऐसा बर्ताव की मैं कोई अजनवी हूँ..मुझे दुःख देता रहा..मैं उदास होकर कमरे बैठ गयी और आँख में आंसू आ गए..फिर मैंने बड़ो से बात करके वहां से जाने का फैसला कर लिया जब उन्होंने जाने की इज़्जाजत दे दी तो मैंने भी जाने का मैं बना लिया..मैं बहुत दुखी थी ..तो मेरा किसी से मन भी नहीं था बात करने का ....इसलिए मैं सीधी चलती चली गयी.
Sunday, May 18, 2014
Thursday, January 16, 2014
उपरूपकाणि ।
उपरूपकाणि अधोक्तानि अष्टादश सन्ति ।
१ –नाटिका
२ –त्रोटकमǃ
३ –गोष्ठी
४ –सट्टकम्
५ –नाट्यरासकम्
६ –प्रस्थानम्
७ –उल्लाप्यम्
८ –काव्यम्
९ –प्रेंखणम्
१० –रासकम्
११ –संलापकम्
१२ –श्रीगदितम्
१३ –शिल्पकम्
१४ –विलासिका
१५ –दुर्मल्लिका
१६ –प्रकरणिका
१७ –हल्लीशः
१८ –भाणिका
इति
१ –नाटिका
२ –त्रोटकमǃ
३ –गोष्ठी
४ –सट्टकम्
५ –नाट्यरासकम्
६ –प्रस्थानम्
७ –उल्लाप्यम्
८ –काव्यम्
९ –प्रेंखणम्
१० –रासकम्
११ –संलापकम्
१२ –श्रीगदितम्
१३ –शिल्पकम्
१४ –विलासिका
१५ –दुर्मल्लिका
१६ –प्रकरणिका
१७ –हल्लीशः
१८ –भाणिका
इति
प्रस्तोता - SANSKRIT JAGAT
दशरूपकाणाम् एकैकशः उदाहरणम्
१ – नाटकम् – शाकुन्तलम्‚ मुद्राराक्षस२ – प्रकरणम् – मृच्छकटिकम्‚ मालतीमाधवम्३ – भाणः – लीलामधुकरः४ – प्रहसनम् – लटकमेलकम्‚ धूर्तचरितम्५ – डिमः – त्रिपुरदाह६ – व्यायोगः – सौगन्धिकाहरणम्‚ मध्यमव्यायोगः७ – समवकारः – समुद्रमथनम्८ – वीथी – मालविका९ – अंक – शर्मिष्ठाययातिः१० – ईहामृगः – कुसुमशेखरविजयः
Saturday, January 11, 2014
श्रीमद्भगवद्गीतावैशिष्ट्यम्
श्रीमद्भगवद्गीता महाभारतस्य भीष्मपर्वणि अस्ति ।
युद्धसमये भगवता श्रीकृष्णेन अर्जुनं प्रति अस्य उपदेशः कृतः ।
अस्मिन् अष्टादशाध्यायाः सन्ति ।
श्रीमद्भगवद्गीतायां ७०० श्लोकाः सन्ति ।
श्रीमद्भगवद्गीतायाः प्रथमः श्लोकः ।
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामका पाण्वाश्चैव किमकुर्वत् संजयǃ ।।
एषः श्लोकः धृतराष्ट्रः संजयं प्रति उक्तवान् ।
मामका पाण्वाश्चैव किमकुर्वत् संजयǃ ।।
एषः श्लोकः धृतराष्ट्रः संजयं प्रति उक्तवान् ।
महाभारतस्य मंगलाचरणम् ।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ।।
महाभारतयुद्धं अष्टादशदिनानि प्राचलत् द्वयोः पक्षयोः सैन्यप्रमाणं अष्टादश अक्षौहिणी इति आसीत् । महाभारते अष्टादश अध्यायाः सन्ति । महाभारतस्य प्रसिद्धांशे श्रीमद्भगवद्गीतायामपि अष्टादशअध्यायाः सन्ति ।
महाभारतस्य अष्टादश पर्वाणि ।
महाभारते अष्टादशपर्वाणि सन्ति । एतेषां नामानि निम्नोक्तानि सन्ति ।
- आदिपर्व
- सभापर्व
- वनपर्व (अरण्यपर्व)
- विराटपर्व
- उद्योगपर्व
- भीष्मपर्व
- द्रोणपर्व
- कर्ण्ापर्व
- शल्यपर्व
- सौषुप्तिकपर्व
- स्त्रीपर्व
- शान्तिपर्व
- आनुशासनिकपर्व
- अश्वमेधपर्व
- मौसलपर्व
- महाप्रस्थानपर्व
- स्वर्गारोहणपर्व
- आदिपर्व
- सभापर्व
- वनपर्व (अरण्यपर्व)
- विराटपर्व
- उद्योगपर्व
- भीष्मपर्व
- द्रोणपर्व
- कर्ण्ापर्व
- शल्यपर्व
- सौषुप्तिकपर्व
- स्त्रीपर्व
- शान्तिपर्व
- आनुशासनिकपर्व
- अश्वमेधपर्व
- मौसलपर्व
- महाप्रस्थानपर्व
- स्वर्गारोहणपर्व
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